मकर संक्रांति Makar Sankranti को भारत के विभिन्न राज्यों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में इसे खिचड़ी,आँध्रप्रदेश,कर्नाटका,और केरल में इसे संक्रांति के नाम से जाना जाता है , बिहार, राजस्थान और झारखण्ड में सकरात, गुजरात में उत्तरायण ,और तमिलनाडु में इसे पोंगल कहते हैं। यह अलग-अलग प्रांतों में अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है।
मकर संक्रांति(Makar Sankranti)
हिन्दू धर्म के अनुसार मास को कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष दो भागों में बांटा गया है। इसी प्रकार वर्ष को भी दो भागों में बांटा गया है एक उत्तरायण और एक है दक्षिणायन। ये दोनों गति को मिला कर एक वर्ष पूरा होता है। मकर संक्रांति के दिन सूर्य अपनी उत्तरायण गति प्रारंभ करता है। इस लिए मकर संक्रांति को उत्तरायण भी कहा जाता है।
उत्तरायण उस समय को कहते हैं जब सूर्य उत्तरी गोलार्ध की ओर बढ़ता है, यह मकर संक्रांति से शुरू होता है और छह महीने तक रहता है।पौष मास में सूर्य धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करता है ।
मकर संक्रांति (Makar Sankranti) कब मनाते हैं ?
यह आमतौर पर 14 जनवरी को मनाया जाता है। लेकिन कभी-कभी यह 15 जनवरी को ज्योतिष के अनुसार मनाया जाता है।मकर संक्रांति को हिंदू धर्म में बहुत महत्व है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान का विधान है, माना जाता है कि ऐसा करने से भक्तों के पाप नष्ट हो जाते हैं।
हिंदू धर्म में सूर्य देव का बड़ा ही महत्त्व है। भगवान सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में परिवर्तन संक्रांति कहलाता है।इस दिन सूर्य देव धनु राशि से मकर राशि में गोचर करते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार मकर संक्रांति पर अपने पुत्र शनि देव से मिलने जाते हैं। सूर्य के राशि परिवर्तन के मौके पर मकर संक्रांति मनया जाता है।
मकर संक्रांति(Makar Sankranti) क्यों मनाते हैं ?
इसे देवताओ के दिन भी कहा जाता है। प्राचीन कथाओं के अनुसार सूर्य देव और शनि देव के बीच मधुर संबंध नहीं थे। इसका कारण शनि देव की माता (छाया) के प्रति सूर्य देव का व्यवहार था।शनि देव के सावले रंग के कारण सूर्य देव ने उन्हें अपने पुत्र मानने से इंकार कर दिया। उनका कहना था इतना काला मेरा पुत्र नहीं हो सकता और अपने आप से शनि देव और उनकी माता (छाया) को अलग कर दिया ।
सूर्य देव के अलग करने के बाद जिस घर में वे रहते थे उसका नाम कुम्भ था। सूर्य देव के इस प्रकार व्यवहार से दुखी हो उनकी पत्नी छाया ने उन्हें कुष्ठ रोग होने का श्राप दे दिया। ऐसा श्राप पाने से सूर्य देव ने उनका घर जला दिया।सूर्य देव को छाया के द्वार दिए हुए श्राप से मुक्त करने में उनकी पहली पत्नी संज्ञा के पुत्र यम ने मदद की, और साथ ही साथ यह शरत् रखखी की वे मां छाया और शनि के प्रति अपना व्यवहार बदलेंगे । जब सूर्य देव ने अपनी गलती स्वीकार की और अपनी पत्नी छाया और पुत्र शनि देव के पास गए तो उन्होंने देखा कि उनका घर जलकर राख हो गया है।
जब शनि देव ने सूर्य देव को देखा तो उन्होंने काले तिल से उनका स्वागत किया। शनिदेव द्वारा किए गए स्वागत से, सूर्यदेव बेहद खुश हुए और उन्होंने शनिदेव को मकर नाम का एक नया घर प्रदान किया।सूर्य देव की कृपा से शनिदेव कुम्भ और मकर दो राशियों के स्वामी बने।
मकर संक्रांति (Makar Sankranti) कैसे मनाते हैं ?
इस दौरन सूर्य देव की पूजा करते हैं, ज़रूरतमंदों को दान करते हैं, पतंग उड़ाते हैं, तिल और गुड से बनी हुई मिठाई खाते और खिलाते हैं।यह किसानों द्वारा बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। वे अपनी फसल के लिए भगवान को धन्यवाद देते हैं और नए कृषि चक्र में अच्छी फसल के लिए प्रार्थना करते हैं।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार , मकर संक्रांति के दिन सूर्य भगवान अपने पुत्र शनिदेव के घर जाते हैं, इस दिन सूर्यदेव की पूजा काले तिल से करने से बहुत लाभ मिलता है।
भगवान सूर्य ने शनि देव को आशीर्वाद दिया कि जब भी वे उनसे मिलने उनके घर आएंगे तो उनका घर धन और धान्य से भर जाएगा।
इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। सूर्य देव का आशीर्वाद पाने के लिए मकर संक्रांति के दिन जी लोग सूर्य देव का काले तिल से पूजन करते हैं उनका घर धन धन से और जीवन सुख से भर जाता है।